गरीबी
ग़रीबी मे लोग मजबूर हो जाला
पढी लिखी मजदूर हो जाला
दु रोटी कमावे खातिर
घर परिवार चलावे खातिर
आपन घर सभे छोड देला
अपने घर बनावे खातिर
कहु दिन दुपहरिया खडी धुप मे
खुन पसीना बहावे
त केहु पिछे पनही त केहु बोझ उठावे
केहु दिन रात मेहनत करे मिटावे खातिर भुख
ना भुख मिटे ना चिंता मिटे
ना मिले कबो चैन सुख
पईसा के बा खेल निराला गजब खेल दिखावे
पइसा खातिर जज बने सभ पईसे मुजरिम बनावे
गरीबी बडी महान ह भाई ,जे सबके अपनावे
के आपन ह के बेगाना, भली भाती समझावे
सुख बडा सवाथी ह समर ,जे अपने के भी भुल जाला
तोड देला हर रिश्ता नाता ,धमंड मे अतना चुर होला