गरीबी है उसके घर में
गऱीबी है उसके घर में ,कौन सा खजाना है।
लूट लिया उसे भी दिन में ,वो अनजाना है।।
कल झोपडी थी अपनी,जिशम से भी प्यारी
जला गया कोई अँधेरे में,सुनो तुमें बताना है।।
फैसला मांग रहा था, खड़ा होके दरबार में वो
हकूमत ने घूमकर भी न देखा,क्या सुनाना है।।
कथली में घोंटता वो दम,अपनी आँखे भिगाए
दर दर की ठोंकरे हैं बदी, यार बड़ा लजाना है।।
उसे डर है कि सहारा भी, न छीन ले जाए कोई
मग़र छुप कहाँ जाए वो, है आया बुरा जमाना है।।
अपनी फ़रियाद रख दी है ,उसने,साहब के सामने
मुद्दतों की ग़ज़ल को उसकी,आज तुमने जाना है।।