गरीबी पर लिखे अशआर
ये एहसास-ए-महरूमी
तेरी क्यों नहीं जाती ।
ऐ गरीबी तेरी सूरत
बदल क्यों नहीं जाती ।।
जानता है वही जो इसको ढोता है ।
कितना भारी गरीबी का बोझ होता है ।।
कोई तो हमदर्द हो गरीबी का ।
कोई सिल दे लिबास ग़ुरबत का ।।
बात अच्छी है बस अमीरी की ।
तुम गरीबी का ज़िक्र मत करना ।।
एहसास-ए-मुफ़लिसी सबसे बड़ा
गम है गरीब का ।
या’रब किसी इंसान को इंसान का
मोहताज न बनाए ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद