गरीबी की उन दिनों में ,
गरीबी की उन दिनों में ,
तलब थी अमीर बनने की।
बड़े बड़े सपने थे मन में,
पर खाने को अन्न
और पहनने को न थे कपड़े।
कमरे के चार दीवारों पर ,
बुनते थे सपनेंं ।
निकल पड़ते थे पूरी करने,
पर कहने को न थे कोई अपने।
…..✍️ योगेन्द्र चतुर्वेदी