गम
चाँद रात भर चलता रहा
निशा को हिम्मत दिलाता रहा
साथ हूँ तेरे
अकेला न समझ मेरे साथी
निशा ने इन्सान से कहा
मैं बनाई ही गयी हूँ इसलिए
अगले दिन नयी ऊर्जा नयी उमंग से
तू फिर फतह कर किले को
निशा हर गम को दिल के
आले में जगह दे देती है
तभी तो
गमगीन दिल आंसू भी अपने में
छिपा लेता है
अब क्या बयां करूँ
ऐ निशा तेरे हाल ऐ दर्द
रात के गुनाह देख कर
तू झटपटा तो जाती है
पर आदत से मजबूर
अंधेरे को अंधेरा
ही रहने देती
किसी की आबरू की खातिर
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल