गम के दिनों में साथ कोई भी खड़ा न था।
गज़ल
221/2121/1221/212
गम के दिनों में साथ कोई भी खड़ा न था।
जिनको पड़ोसियों से कोई वास्ता न था।1
वो जिंदगी से जंग भी अच्छी लगी मुझे,
उस वक्त जाति धर्म कोई पूछता न था।2
उस रात तेरी याद में बेचैन था बहुत,
पीने की चाह थी तो मगर मयकदा न था।3
बेटा हुआ शहीद उसे फक्र था बहुत ,
खोने का ग़म तो था वो मगर गमज़दा न था।4
‘प्रेमी’ गुज़ारी जिंदगी उसने यूॅं ही तमाम,
खुद को बनाया हीर प रांझा मिला न था।5
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी