गधे का दर्द
एक गधे ने ब्रह्याजी को अपना अपना दर्द सुनाया।
ब्रम्हण मुझ पर ही क्यों मूर्खता का उदाहरण फरमाया।
इतना कहकर गधे को रोना आय।
सुनकर ब्रह्मा जी का दया भाव जाग आया।
अरे गधे अरे तू शायद स्वार्थी मानव के चक्कर में आया।
तुझे पता नहीं आज कल मानव ने सोचा।
अपनी परिभाषा को बदल डालो।
जो संकट में सहारा हो उसको मसल डालो।
तेरी पीठ पर ईंटा ढो बड़ा ही भवन बनाया।
फिर ए सी में बैठ झूठी शान में इतराया
अरे गधे मानव ने तेरे धैर्य शांति लाभ उठाया।
क्योंकि तुमने और जानवरों सा विरोध नहीं जताया।
कुत्ते से काटना ,बिल्ली सा झपटना , लोमड़ी की चतुराई तू नहीं पाया।
घोड़ा की दौड़ हाथी की सूंड साँड सा सींग और शेर सा नही गुर्राया।
इसलिए मानव ने तुझे मूर्ख का उदाहरण ठहराया।
यह बात सुन ब्रह्माजी की गधे को समझ आया।
महामूर्ख ने ही मुझे मूर्ख ठहराया।
यह सोच गधे ने फिर चीहो चीहो शंख बजाया।
मार पुष्टगें दौङ लगा फिर धूल में लोट लोट नहाया।
प्रशांत शर्मा “सरल”
नेहरू वार्ड नरसिंहपुर
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