गधा चला पढ़ने विद्यालय,
सार छंद
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गधा चला पढ़ने विद्यालय, ले हाथों में बस्ता।
चलते-चलते भूल गया वह, विद्यालय का रस्ता।
इधर- उधर वह देख रहा था नजर न कोई आया।
सोच रहा था किससे पूछूँ, कैसे मैं भरमाया।
लगा सोचने ओटो ले लूँ, मिले अगर जो सस्ता।
गधा चला पढ़ने विद्यालय, ले हाथों में बस्ता।
पढ़ लिख कर बन जाऊँ पंडित,सिर पर होगा टीका।
हाय निर्दयी मेरा मालिक ,मुझको कितना पीटा।
बोझा ढ़ोते-ढ़ोते मेरी ,हालत होती खस्ता।
गधा चला पढ़ने विद्यालय, ले हाथों में बस्ता।
तभी अचानक हरी-भरी-सी, खेत नज़र में आई।
बड़ी जोड़ से भूख लगी थी, नज़र देख ललचाई ।
सोचा जी भर कर खाऊँगा, फिर ले लूँगा नश्ता।
गधा चला पढ़ने विद्यालय, ले हाथों में बस्ता।
फसल खेत में खाते-खाते,क्षुधा किया कुछ ठंडा।
पकड़ खेत का मालिक उसको, खूब लगाया डंडा।
लगी पिटाई इतनी ज्यादा,तन पर टूटा दस्ता ।
गधा चला पढ़ने विद्यालय, ले हाथों में बस्ता।
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-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली