गद्दार
गद्दार
“”””‘””‘
गद्दारों का कोई जाति धर्म
मजहब, उसूल नहीं होता।
ये कब कहाँ कैसे पाये जायेंगे
ये भी पता नहीं होता।
खुजैले कुत्ते की तरह ये जब तब
जहाँ तहाँ पाये जाते हैं।
अपनी आदत से ये
जब तब खूब गरियाये जाते हैं।
तब भी बेशर्मों की तरह
ये मुस्कराये जाते हैं।
बेशर्मी ही इनका उसूल है
दुत्कार इनके लिए फूल है।
ऐसे लोगों की कहीं कमी नहीं है।
इनकी आंखों में भावनाओं
संवेदनाओं की नमी नहीं है।
?सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा(उ.प्र.)
8115285921