गण पर तंत्र सवार
लोकतंत्र मैं हो गया, गण पर तंत्र सवार
कब होगा गण का भला ,साधु करो विचार
साधु करो विचार, मंत्र कुछ नया बनाओ
सुधर जाए ये तंत्र ,यंत्र ऐसा अपनाओ
राजनीति बदनाम हुई, न रीति रही न रीति रही
हर दल की चाहत सत्ता बस ,कुर्सी से ही प्रीत रही
सत्ता पाने के खातिर ,वे क्या-क्या ढोंग रचाते हैं
बेमतलब के मुद्दे लेकर ,सत्ता में आ जाते हैं
ठगा ठगा सा गण बेचारा, आस लगाए बैठा है
कब सुधरेगा तंत्र हमारा, ख्वाबों में ही जीता है
कभी नागनाथ जी आते हैं ,कभी सांप नाथ आ जाते हैं
कभी मिल जुल कर के, बगुल नाथ अपना बिगुल बजाते हैं
कोई झंडा, कोई डंडा, मिलकर सबको हांक रहा
जाति धर्म और वर्ग भेद से, मिलकर सब को बांट रहा
हुए 75 साल आज, गण क्यों मेरा सोया है
नहीं जान पाया अब तक गण ,हमने क्या-क्या बोया है
फेंक दे गठरी जात पात की, फेंक धर्म आडंबर को
सबके हित की बात करें, चुन ऐसे किसी दिगंबर को
भारत का गणतंत्र बचाने, शपथ आज लेता हूं
नहीं बटूगा फिरको मैं भारत का बेटा हूं
लोकतंत्र के मूल्य सदा , मैं मिलकर सदा बचाऊंगा
भारत माता के गौरव को, उच्च शिखर पर लाऊंगा
प्रजातंत्र के मूल मंत्र को, हरदम याद रखूंगा
जाति पाति और धर्म आदि पर ,कतई न वोट करूंगा
अधिकारों से पहले अपना, मैं कर्तव्य निभाऊंगा
अमर रहे गणतंत्र हमारा, थाम तिरंगा गाऊंगा
लाख अभाव में जीता हूं, हंसता हूं और गाता हूं
अमर रहे गणतंत्र हमारा ,यही मंत्र दोहराता हूं
खड़ा हुआ अंतिम पंक्ति में, किरण कभी तो आएगी
राजपथों से निकल कभी तो, मेरे घर तक आएगी
आश्वासन के कई शिगूफे तुमने अब तक छोड़े हैं
पहुंचना पाए पास में अब तक, रहे कागजी घोड़े हैं
राह देखते गुजरे दादा ,बापू भी अब चले गए
अम्मा देख रही है सपने ,सरकारों के नए-नए
कब तक होगी भोर सुहानी ,कब शामें होंगी नई नई
बीत गई सदियां सपनों में, आस न मेरी कभी गई
कब तक दूर गरीबी होगी ,कब होगा हर हाथ में काम
कब तक दूर अंधेरा होगा, क्या कभी मिलेगामुझेमुकाम
सुरेश कुमार चतुर्वेदी