बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
ठंड लग रही बड़ी जोर से,
हाड़ कांपता चहुँ ओर से।
फिर भी सीना तान खड़ा है,
बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
मन तो उसका भी है करता,
ओढ़ रजाई मैं सो जाऊं।
सुबह शाम की दो रोटी,
मैं भी माँ के हाथ की खाऊं।
अपने बच्चों के संग खेलूं,
मैं भी उन संग लाड़ लड़ाऊं।
बैठे वो मेरी पीठ पर ,
घोड़ा बन उनको में खिलाऊँ।
वर्षा हो,ठंड हो या हो गर्मी,
‘दीप’ सीना ताने सदा खड़ा हैं।
प्रकाश से उसके वतन है रोशन,
जज्बा उसका बहुत बड़ा है ।
बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
बॉर्डर पर जवान खड़ा है।
-जारी
-©कुलदीप मिश्रा