गणित
गणित
221 2121 1221 212
गणित
सबका अलग अलग ही है अफ़कार का गणित।(दृष्टिकोण)
अब तक समझ न पायी मैं संसार का गणित।।
दो लाल चार पीली गुलाबी हों बीच में।
सजने सँवरने में लगा श्रंगार का गणित।।
माँगी किसी से माफ़ी किसी को मुआफ़ कर।
चलता इसी तरह रहा परिवार का गणित।।
छोटे को छोटा और बड़े को बड़ा दिया।
यूँ मुफ़्लिसी रहीसी के उपहार का गणित।।
उनको जरूर तू दिखा उस वक़्त आइना।
दुनिया लगाए जब तेरे किरदार का गणित।।
बस इसमें ही नहीं नफ़ा नुकसान देखिए।
दिल को नहीं पसंद है यूँ प्यार का गणित।।
इक पल भी सदियों सा लगा था इंतज़ार में।
कुछ इस तरह हिसाब करे यार का गणित।।
इसकी खबर छुपाके मैं उसकी ही छाप दूँ।
ऐसे लगाया जा रहा अख़बार का गणित।।
यह आदमी है काम का आएगा काम भी ।
इससे बनाये रखना है व्यवहार का गणित।।
कर्तव्य पूर्ण करते हुए मद जो आ गया।
उस वक्त से शुरू हुआ अधिकार का गणित।।
जब खाने वाले चार कमाता ही एक हो ।
कंधे लगाने लग गए हैं भार का गणित।।
बिगड़ी है नस्ल फस्ल मगर लाजबाब है।
कुछ काम का रहा न जमींदार का गणित।।
बिन बोले सुन लिया कभी बिन माँगे दे दिया।
कितना निराला है मेरे दातार का गणित।।
मैं जितना चाहती हूँ वो भी उतना चाहता।
अक्सर लगाती रहती हूँ दिलदार का गणित।।
जनता है ज्योति आज भी कठपुतली की तरह।
वोटों के बाद बदला है सरकार का गणित।।
श्रीमती ज्योति श्रीवास्तव
साईंखेड़ा( जि- नरसिंहपुर)