गणित
संख्याओं की उपयोगिता
जब समझ मे आने लगी।
तो मूल्यों और मुद्दों
को पीछे धकेल कर
अंकगणित मोर्चे पर आ गयी।
अपने और दूसरे
के जोड़ घटाव
से निकली ये संख्याएं
अब खुद को सुरक्षित महसूस
कर रही है।
पर कुछ अंक समूह
अब भी गणित
के इस हस्तक्षेप
से सरोकार नही रखते।
और सही गलत पर
बात चाहते हैं।
गणित अब नए
सिद्धांतों की
तलाश मे
जुट गई है।
सोचना ये भी
है कि
देश को इस गणित की
जरूरत आखिर क्यूं पड़ी?
और लोगों को भी कि
वो महज संख्या मे
तब्दील कब
और कैसे हुए?