गज़ल
सादगी का लिबास ओढ़ते हैं गैरों की महफिल में
अपनों को तो लोग, खंजर की नोक पर रखते हैं।
अपना कहना और अपनों की तरह रखना,बात अलग है
यहां सबके चेहरे अपना अपना मिजाज रखते हैं।
आईना भी जिन्हें शक्ल दिखाने से इनकार करता है
वो भी, बार_बार, आईने में उतर जाने की बात करते हैं।
एक चेहरा हो तो पहचानने में कोई मुश्किल नहीं होती।
यहां तो लोग एक चेहरे के पीछे हजारों चेहरे रखते हैं।
~~ करन केसरा ~~