गज़ल
एक गज़ल
वो नज़रों को चुराये जा रहा है I
न जाने क्या छुपाये जा रहा है II
रहा है दर्द से रिश्ता पुराना I
वो शिद्दत से निभाये जा रहा है II
कोई रोटी को है मुह़ताज देखो
कोई धन ही पचाये जा रहा है II
दिलों में तो महाभारत है जा़री I
वो रामायण सुनाये जा रहा है II
तरक्की़ से बड़ा है बे-ख़बर वो I
पुराना राग गाये जा रहा है II
छिपे हैं कृष्ण कंटक इन गुलों में I
वो राहों में बिछाए जा रहा है II
श्रीकृष्ण शुक्ल, मुरादाबाद I