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31 Mar 2021 · 1 min read

गज़ल

बात वो जो मैं कभी कहता नहीं!
प्यार के काबिल हमें समझा नहीँ!

हो चुका जर्जर …गिरे जो टूट कर,
ऐसे् घर में कोई् भी ….रहता नहीं!

हर को्ई सौदा …..मुनाफे का करे,
कोई् यूँ ही दर्द को…..सहता नहीं!

मतलबी मैं भी हुं तुम भी और भी,
है मुरौवत का ….को्ई रिश्ता नहीं!

प्रेम को ‘प्रेमी’ मिले ..उसका करम,
प्रेम सागर यूँ ही् …..लहराता नहीं!

…..✍ ‘प्रेमी’

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