गज़ल
22….22….22…2(211)
मेरे सम्मुख आयेगा!
कैसे आंख मिलाएगा!
तेरे साथी साथ नहीं,
तू कैसे टिक पाएगा!
होली का मौसम आया,
सारा जग बौराएगा!
ऋतु बासंती आई है,
तू भी अब खिल जाएगा!
चोर नहीं जिसके दिल में,
क्यों आखिर घबराएगा!
जब तक मास्क लगाएगा!
तब तक मुॅंह छुप जाएगा!
कोरोना गर खत्म हुआ,
मुॅंह कैसे दिखलाएगा!
तीर गया जो तरकस से,
वापस लौट न पायेगा!
सोच समझकर बोल सखे,
फिर पीछे पछिताएगा!
‘प्रेमी’ कर ले प्रेम ज़रा,
ईश्वर भी मिल जाएगा!
….. ✍ ‘प्रेमी’