गज़ल
#########((( ग़ज़ल )))#########
यादों की बस्ती में कुछ फूल खिले होंगे
छु पाए जो दिल को कुछ लोग मिले होंगे
दामन ही मगर जिनके धोखे से रंगे होंगे
अपनो में ही कुछ लोग ऐसे भी मिले होंगे
कुछ ख्वाब मुहब्बत के अक्सर ही बुने होंगे
चाहत में हम जैसे ही सदियों से जले होंगे
कुछ तीर निगाहों के सीने पे चले होंगे
दर्द के ये रिश्ते भी”ग़ज़लों”में ढले होंगे
तन्हा ही चले थे हम कुछ दूर चले होंगे
राहों में मगर ढेरों नस्तर भी चले होंगे
खामोश ही धड़कन है तुफां भी कई होंगे
चाहत में मगर दिल के अरमां भी जले होंगे
तनहाई की रातों में ज़ख्मों को छिपाया है
ज़ख्मों के निशान ना हो आंसू तो बहे होंगे
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गौतम जैन