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22 Feb 2018 · 1 min read

गज़ल

आज घडियां रूकी रूकी सी हैं ।
शब की आंखें थकी थकी सी हैं ।
गर्द आलूद शेल्फ में रख्खी ।
सब किताबें नई नई सी हैं ।
अहद-ए-माज़ी तेरी पिटारी में।
चंद यादें सडी गली सी हैं ।
खुं मे लिथडे गुलाब सा लहजा।
तेरी बातें धुली धुली सी हैं।
नखल-ए-उम्मीद कट गया लेकीन ।
टहनीयां सब हरी भरी सी हैं ।
नागहानी सुकुत से गलियां।
सहमी सहमी डरी डरी सी हैं ।
दुख के सिंगार से सजी “साबिर”।
तेरी गज़ले बनी ठनी सी हैं।

साबिर शाह साबिर
9421396640

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