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24 May 2017 · 1 min read

गज़ल

फ़िलबदीह-१२१
२३/५/१७

मिसरा-न जाने वजह क्या हुई खुद खुशी की।
काफ़िया-ई
रदीफ-की।

गिरह-
हां कोस रहा था कल वो अपनी खलिश को ही,
न जाने पर वज़ह क्या हुई, खुद खुशी जो की।
१)
महबूब मुहब्बत को दिल में हीं रखना,
वरना, मिलेगी सज़ा तेरे दिल की लगी की।
२)
समझ राज़ बातों में ,कुछ भी नहीं है,
ज़रा सोच लेना, वजहा बेखुदी की।
३)
मुहब्बत फसाना न बन जाए तेरी,
वजह सोच लेना,ज़रा खुद खुशी की।
४)
सगे दिख रहें हैं,जो रिश्ते गहन में,
परखना ज़रा नब्ज़, तुम दोस्ती की।
५)
क्यों गैरों में जाकर के अपनों को भूला,
क्या आती नहीं याद, अपनी ज़मीं की।
६)
तू कर जाके नीलम से,इकरारे मोहब्बत,
इसी में छिपी है ,खुशी ज़िन्दगी की।

नीलम शर्मा

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