गज़ल (दिल में है खंजर छिपाए चल रहे जो साथ है)
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#########(((गज़ल)))#########
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२१२२ २१२२ २१२२ २१२
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ख्वाहिशों की आग में झुलसी हुई हर सांस है
जब दिलों में जिंदगी हर पल सुनहरा ख्वाब है
जख्म दिखते हैं हज़ारों ज़िन्दगी की पीठ पर
दिल में है खंजर छिपाए चल रहे जो साथ है
लोग लाशों पर बनाने अब लगे हैं आशियां
नफरतों की आग में इंसानियत भी खाक है
कायरों के झुंड में हर कोई आदमखोर है
सुर्ख क्यों अपनी धरा ये कैसी खूं की प्यास है
एक रोटी की जरूरत एक ही वो प्यास है
उठ रही क्योंकर यहां इंसानियत की लाश है
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” गौतम जैन ”
9866251031