गज़ल क्या लिखूँ मैं तराना नहीं है
गजल क्या लिखूं मैं तराना नहीं है
मेरी जिंदगी का फसाना यही है
मुझे चलते-चलते था रोका किसी ने
मगर आज तो वो जमाना नहीं है
पनाह दी है मैंने बहुतों को लेकिन
मेरा आज खुद का ठिकाना नहीं है
दिया सबने धोखा बस अपना बना कर
मगर गम किसी को दिखाना नहीं है
मुझे अपने यूं ही भूलाते रहे सब
मगर मुझसा पागल दीवाना नहीं है
भला इससे ज्यादा क्या तुमको बताऊं
मेरी रास्ता और फसाना यही है
खुदा ही रूठा हो “V9द” जिसका
सारे जहां को मनाना नहीं है
स्वरचित
V9द चौहान