गज़ले
1,
कुछ नमी अपने साथ लाता है ।
जब भी तेरा ख़याल आता है।।
देख कर ही सुकून मिलता है ।
तेरा चेहरा नज़र को भाता है ।।
कुछ भी रहता नहीं है यादों में ।
वक़्त लम्हों में बीत जाता है ।।
रास्तों पर सभी तो चलते हैं ।
कौन मंज़िल को अपनी पाता है ।।
मैं भी हो जाती हूँ ग़ज़ल जैसी ।
वो ग़ज़ल जब कभी सुनाता है ।।
2,
इश्क़ मुझको कहां पर लाया है ।
हर जगह तुझको मैंने पाया है ।।
जानते हैं , यह हो नहीं सकता ।
भूल जाने की ज़िद तो ज़ाया है ।।
खुद पर करके गुरूर क्या करते ।
खत्म हो जानी यह तो काया है ।।
बात दुनिया की कर नहीं सकते ।
धोखा खुद से भी हमने खाया है ।।
इश्क़ मुझको कहां पर लाया है ।
हर जगह तुझको मैंने पाया है ।।
3,
ह्रदय की वेदना को
मन की संवेदना को
जो व्यक्त कर सके
जो विभक्त कर सके
पीड़ा की मूकता को
रिश्तों की चूकता को
वो शब्द ढूंढने हैं
वो निःशब्द ढूंढने हैं
समझा सकूं स्वयं को
वो विकल्प ढूंढने हैं।
4,
मैं न रहूँ
तुम लफ़्ज़ों में
ढूंढ़ना मुझको
समझना मेरे
हर एहसास को
फिर सोचना मुझको
नमी बन के जो
आंखों में तेरी आ जाऊं
वो एक लम्हा
जब तेरे दिल से
मैं गुज़र जाऊं
तुम्हारे ज़ेहन में
यादों सी मैं बिख़र जाऊं
तलाशे तेरी नज़र मुझको
और मैं नज़र नहीं आऊं
फिर सोचना मुझको
फिर सोचना खुद को !
5,
एहसास है मुझे
है कोई मेरा अपना
आयें चाँदनी जब रातें
मेरे साथ तुम भी जगना
कभी हो सफ़र में तन्हा
मुझे याद कर भी लेना
कभी साथ जो छूटे
मुझे मुड़ के देख लेना
कभी हो तुम्हें जो फुर्सत
मुझे पढ़ के देख लेना
मैं समझ में आऊं तेरे
मुझे लिख के देख लेना
मेरी ज़िन्दगी तुम्हीं से
मुझे कह के देख लेना
6,
किसी भी ग़म की
न कभी तेरे हिस्से में
कोई शाम आये
मुस्कुराता हुआ
तेरे हिस्से में ,
तेरा हर एक पल आये
तमाम ख़ुशियाँ जहाँ की
तेरा मुकद्दर हों
मेरे लबों की दुआ का
बस तू ही मरकज़ हो ।
7,
अपना दिल खुद ही
हम दुखा बैठे ।
उससे उम्मीद
एक लगा बैठे ।।
याद करते हैं
हर लम्हा उसको ।
कैसे कह दें
उसे भुला बैठे ।।
जो न समझेगा
मेरे जज़्बों को ।
हाल-ए-दिल
उसको ही सुना बैठे ।।
दूर जब से हुए
हैं हम उससे ।
फ़ासला खुद से
भी बड़ा बैठे ।।
अपना दिल खुद ही
दुखा۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔बैठे
8,
पैदा हालात कर ही लेते हैं ।
आंखों में रात कर ही लेते हैं।।
लेकर लफ़्ज़ों के ताने-बाने को।
ज़ाहिर जज़्बात कर ही लेते हैं।।
न-न करके भी न जाने क्यों ।
आपसे बात कर ही लेते हैं ।।
गर समझना हमें ज़रूरी है ।
एक मुलाकात कर ही लेते हैं ।
पैदा हालात कर ही लेते हैं ।
आंखों में रात कर ही लेते हैं ।।
9,
जीवन का इतना
सम्मान करना ।
कभी न स्वयं पर
अभिमान करना ।।
कर्तव्य तेरा हो
उद्देश्य -ए – जीवन ।
देश पर प्राणों का
बलिदान करना ।
नहीं दान कोई
इससे बड़ा है।
हृदय के तल से
क्षमादान करना ।
पुन्य का केवल
साक्षी हो ईश्वर।
कभी न दिखावे
का तुम दान करना ।।
10,
दिल का भी इत्मीनान रक्खेंगे।
फ़ासला, दरमियान रक्खेंगे। ।
आपकी सोच मुख़्तलिफ़ हमसे ।
हम भी इसका ध्यान रक्खेंगे।।
वार तुम पर तो कर नहीं सकते।
ख़ाली अपनी म्यान रक्खेंगे।।
दोस्तों की कमी नहीं होगी।
जितनी मीठी जुबान रक्खेंगे।।
करके ख़ामोशियों में गुम ख़ुद को ।
दिल का हम इम्तिहान रक्खेंगे ।।
11,
कौन इस वास्तविकता से
परेशान नहीं है।
जीवन तुझे जीना इतना
आसान नहीं है।।
विवशता है बुढ़ापा कोई
अभिशाप नहीं है।
वृद्धाश्रम इस समस्या का
समाधान नहीं है ।।
गुजरना है हमें भी इस
अवस्था से एक दिन।
ऐसा तो नहीं है कि
कर्मों का भुगतान नहीं है।।
समझो तो इबावत
न समझो तो समस्या ।
माँ-बाप की सेवा से
बड़ा कोई पुन्य नहीं है।।
12,
याद भी तेरी साथ लाती है ।
हाय बरसात दिल दुखाती है ।
आप से कुछ गिला नहीं हमको ।
हमें क़िस्मत भी आज़माती है ।
दौर-ए- महफ़िल नहीं,अब तो ।
साथ तन्हाईयां, निभाती हैं ।।
आप पर जब यकीन करते हैं ।
दिल की उम्मीदें टूट जाती हैं ।
याद भी तेरी साथ लाती है ।
हाय बरसात दिल दुखाती है ।।
13,
दिल का भी इत्मीनान रक्खेंगे।
फ़ासला, दरमियान रक्खेंगे ।
आपकी सोच मुख़्तलिफ से।
हम भी इसका रक्खेंगे।।
वार तुम पर तो कर नहीं सकते।
खाली अपनी म्यान रखेंगे।
दोस्तों की कमी नहीं होगी।
जितनी मीठी जुबान रक्खेंगे ।।
करके ख़ामोशियों में गुम खद को।
दिल का हम इम्तिहान रक्खेंगे।।
14,
अस्तित्व पर अपना अधिकार करिए।
स्वयं भी स्वयं का सत्कार करिए।।
समझे ना जो तेरे भावों की भाषा ।
दूर से ही उसको नमस्कार करिए।।
दया, प्रेम का ह्रदय में विस्तार करिए।
किसी का कभी ना तिरस्कार करिए ।
अभिव्यक्ति पर अपनी उपकार करिए।
जो स्वीकार ना हो, अस्वीकार करिए ।
अस्तित्व पर अपना अधिकार करिए।
स्वयं ही स्वयं का सत्कार करिए ।।
15,
मेरी ख़्वाहिश ने मुझको लूटा है।
देखा आंखों ने ख़्वाब झूठा है ।
यूँ ही तुझसे ख़फ़ा नहीं हैं हम।
दिल नहीं, ए’तबार टूटा है।
कुछ नहीं तुझसे प्यार है शायद ।
तेरा एहसास दिल को छूता है ।।
क्यों बिछड़ कर बिछड़ नहीं पाये।
साथ कब से हमारा छूटा है।
हम मुकद्दर तो कह नहीं सकते।
जो भी अपना है वो ही रूठा है ।।
16,
नैन अपने यूँ ही न खोयें हैं ।
दर्द लफ़्ज़ों में लिख के रोयें हैं ।।
जागी आंखें गवाही दे देंगी ।
नींद अपनी कभी न सोयें हैं ।
पूछ न हाल-ए-दिल शिकस्ता का ।
बोझ गम के भी उसने ढोये हैं ।।
कुछ निशां उसके रह गये बाक़ी ।
आंसूओं से जो दाग़ धोयें हैं ।
नैन अपने यूँ ही न खोयें हैं ।
दर्द लफ़्ज़ों में लिख के रोयें हैं ।। |
15,
फूल जैसे हम खिल नहीं पाये ।
तुमसे मिलना था मिल नहीं पाये ।।
दर्द रीसता है आज भी उनसे ।
जख़्म दिल के जो सिल नहीं पाये ।।
ज़ब्त का भी कमाल इतना था ।
अश्क़ पलकों से गिर नहीं ।।
भूल सकते थे आपको हम भी ।
आपसा हम जो दिल नहीं पाये ।।
16,
दुश्मनी इस तरह निभायेगा।
वो तेरी हां में हां मिलायेगा ।।
टूट जायेगा कांच की मानिंद ।
दिल किसी से अगर लगायेगा ।।
पहचान उसको तू न पायेगा ।
वो तुझे मात दे ही जाएगा ।।
कर गईं जो दूरियां दिल में ।
फ़ासले कैसे तू मिटायेगा ।।
17,
परमूल्यांकन की न हो
किसी से कभी अपेक्षा ।
स्वयं को पहचानने की हो
जो दृष्टि आपकी ।।
रिक्त न हो मन जब
तेरा विषयों से ।
कैसी पूजा फिर कैसी
इबादत आपकी ॥
सम्बन्धों में कभी न हो
कलह, कलुषता ।
कर्तव्यों के प्रति हो जो
निष्ठा आपकी ।।
जीवन यात्रा में सन्तुष्टि
संभव हो ।
फिर सबकी प्रसन्नता में हो
जो प्रसन्नता आपकी ।।
परनिंदा कभी किसी की
कर न पाओ।
अपने दोषों पर भी हो
जो दृष्टि आपकी ।।
18,
हम ये कैसा मलाल कर बैठे ।
दिल का तुम से सवाल कर बैठे ।।
प्यार करना हमें न आया मगर ।
इश्क में हम कमाल कर बैठे ।।
खोये थे हम तिरे ख़यालों में ।
पर हकीकत ख़याल कर बैठे ।।
ज़िक तेरा ज़बान पर ला कर ।
अपना चेहरा गुलाल कर बैठे ।।
आप को चाहते हैं उन से कहा ।
हम भी कैसी मजाल कर बैठे ।।
19,
एक है ईश्वर एक है दुनिया ।
भेद क्यों फिर सारे हुए हैं ।।
जीत वो सकते हैं कैसे ।
खुद से जो हारे हुए हैं ।।
आसमां उनसे भरा है।
मर के जो तारे हुए हैं ।।
बे’बसी न पूछ हमसे।
कितना दिल मारे हुए हैं।।
हक़ पर चलने वाले शाद ।
कब किसे प्यारे हुए हैं।।
20,
ज़िन्दगी बे’जवाब रहने दो ।
मेरी पलकों पे ख़्वाब रहने दो।।
खुद की इस्लाह कर सकूं मै भी।
मुझको कुछ तो खराब रहने दो।।
इतने ज़यादा गुनाह नहीं अच्छे।
कुछ तो बाकी सवाब रहने दो।।
देख लो एक नज़र मुझे यूँ ही।
मुझमें शामिल शबाब रहने दो।।
21,
जीवन में महत्व रखती
मेरे मन की स्थिरता
तुझे स्पर्श न कर पाई
मेरे शब्दों की व्याकुलता
हर श्वास पर भारी है
मेरे मन की विवशता
तुझसे और तुझी तक है
मेरे जीवन की सम्पूर्णता।
22,
शिद्तों में जो बे’शुमार रहा ।
मेरी आंखों का इंतिज़ार रहा ।।
भूल हमको कभी नहीं सकता ।
दिल में बाक़ी ये ए’तबार रहा ।।
पूंछ कर ज़िंदगी बता देना ।
हम पर किसका कहां उधार रहा ।।
मेरा कब हम पे इख़्तियार रहा ।
दिल तो दिल था सो बे’क़रार रहा ।।
बे’बसी ज़िंदगी में थी शामिल ।
मेरा दामन भी तार-तार रहा ।।
23,
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
हो हालात कैसे, तुम सदा मुस्कुराना ।।
मिट्टी की खुशबू भी दिल जीत लेगी ।
कभी बारिशों में, तुम भीग जाना ।।
सर्द होने लगे दिल-ए- एहसास सारे ।
रिश्तों की गर्माहट को, तुम आज़माना ।।
कभी रूठ कर मुझसे न तुम दूर जाना ।
मनाऊं जो मैं तुमको, तुम मान जाना ॥
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
हो हालात कैसे, तुम सदा मुस्कुराना ।।
24,
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए।
भीड़ से हट के चलने की कोशिश करिए ।
खुद में मुकम्मल यहाँ नहीं होता कोई।
भूल कर अपनी किसी से न तुलना करिए।।
बाक़ी रह जाना है, अगर दिलों में सबके ।
अपने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर करिए ।
वक़्त से आंख मिलाने की हिम्मत करिए।
तेरी पहचान है, क्या साबित करिए ।।
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए।
भीड़ से हट के चलने की कोशिश करिए ।।
25,
जीवन का जीवन पर
तेरे ये उपकार हो ।
केवल सफलता ही नहीं
हार भी स्वीकार हो ।।
वाणी तेरी मीठी-मीठी
उच्य तेरे विचार हो।
मित्र बने शत्रु भी तेरे
ऐसा तेरा व्यवहार हो ।।
तेरी प्रतिष्ठा तेरा गौरव
जीवन का पर्याय हो, ।
जाग उठे आत्मा तेरी
ऐसी एक ललकार हो ।।
कर दूं तुझे आत्मा ही नहीं
हर श्वास समर्पित,
मेरा ‘तुझपर मेरे प्रिय
इतना तो अधिकार हो ।”
26,
कुछ नमी अपने साथ लाता है ।
जब भी तेरा ख़याल आता है।।
देख कर ही सुकून मिलता है ।
तेरा चेहरा नज़र को भाता है ।।
कुछ भी रहता नहीं है यादों में ।
वक़्त लम्हों में बीत जाता है ।।
रास्तों पर सभी तो चलते हैं ।
कौन मंज़िल को अपनी पाता है ।।
मैं भी हो जाती हूँ ग़ज़ल जैसी ।
वो ग़ज़ल जब कभी सुनाता है ।।
इश्क़ मुझको कहां पर लाया है ।
हर जगह तुझको मैंने पाया है ।।
जानते हैं , यह हो नहीं सकता ।
भूल जाने की ज़िद तो ज़ाया है ।।
खुद पर करके गुरूर क्या करते ।
खत्म हो जानी यह तो काया है ।।
बात दुनिया की कर नहीं सकते ।
धोखा खुद से भी हमने खाया है ।।
इश्क़ मुझको कहां पर लाया है ।
हर जगह तुझको मैंने पाया है ।।
27,
ह्रदय की वेदना को
मन की संवेदना को
जो व्यक्त कर सके
जो विभक्त कर सके
पीड़ा की मूकता को
रिश्तों की चूकता को
वो शब्द ढूंढने हैं
वो निःशब्द ढूंढने हैं
समझा सकूं स्वयं को
वो विकल्प ढूंढने हैं।
28,
मैं न रहूँ
तुम लफ़्ज़ों में
ढूंढ़ना मुझको
समझना मेरे
हर एहसास को
फिर सोचना मुझको
नमी बन के जो
आंखों में तेरी आ जाऊं
वो एक लम्हा
जब तेरे दिल से
मैं गुज़र जाऊं
तुम्हारे ज़ेहन में
यादों सी मैं बिख़र जाऊं
तलाशे तेरी नज़र मुझको
और मैं नज़र नहीं आऊं
फिर सोचना मुझको
फिर सोचना खुद को !
28,
एहसास है मुझे
है कोई मेरा अपना
आयें चाँदनी जब रातें
मेरे साथ तुम भी जगना
कभी हो सफ़र में तन्हा
मुझे याद कर भी लेना
कभी साथ जो छूटे
मुझे मुड़ के देख लेना
कभी हो तुम्हें जो फुर्सत
मुझे पढ़ के देख लेना
मैं समझ में आऊं तेरे
मुझे लिख के देख लेना
मेरी ज़िन्दगी तुम्हीं से
मुझे कह के देख लेना
29,
किसी भी ग़म की
न कभी तेरे हिस्से में
कोई शाम आये
मुस्कुराता हुआ
तेरे हिस्से में ,
तेरा हर एक पल आये
तमाम ख़ुशियाँ जहाँ की
तेरा मुकद्दर हों
मेरे लबों की दुआ का
बस तू ही मरकज़ हो ।
30,
अपना दिल खुद ही
हम दुखा बैठे ।
उससे उम्मीद
एक लगा बैठे ।।
याद करते हैं
हर लम्हा उसको ।
कैसे कह दें
उसे भुला बैठे ।।
जो न समझेगा
मेरे जज़्बों को ।
हाल-ए-दिल
उसको ही सुना बैठे ।।
दूर जब से हुए
हैं हम उससे ।
फ़ासला खुद से
भी बड़ा बैठे ।।
अपना दिल खुद ही
दुखा۔۔۔۔۔۔۔۔۔۔बैठे
31,
पैदा हालात कर ही लेते हैं ।
आंखों में रात कर ही लेते हैं।।
लेकर लफ़्ज़ों के ताने-बाने को।
ज़ाहिर जज़्बात कर ही लेते हैं।।
न-न करके भी न जाने क्यों ।
आपसे बात कर ही लेते हैं ।।
गर समझना हमें ज़रूरी है ।
एक मुलाकात कर ही लेते हैं ।
पैदा हालात कर ही लेते हैं ।
आंखों में रात कर ही लेते हैं ।।
32,
जीवन का इतना
सम्मान करना ।
कभी न स्वयं पर
अभिमान करना ।।
कर्तव्य तेरा हो
उद्देश्य -ए – जीवन ।
देश पर प्राणों का
बलिदान करना ।
नहीं दान कोई
इससे बड़ा है।
हृदय के तल से
क्षमादान करना ।
पुन्य का केवल
साक्षी हो ईश्वर।
कभी न दिखावे
का तुम दान करना ।।
33,
दिल का भी इत्मीनान रक्खेंगे।
फ़ासला, दरमियान रक्खेंगे। ।
आपकी सोच मुख़्तलिफ़ हमसे ।
हम भी इसका ध्यान रक्खेंगे।।
वार तुम पर तो कर नहीं सकते।
ख़ाली अपनी म्यान रक्खेंगे।।
दोस्तों की कमी नहीं होगी।
जितनी मीठी जुबान रक्खेंगे।।
करके ख़ामोशियों में गुम ख़ुद को ।
दिल का हम इम्तिहान रक्खेंगे ।।
34,
कौन इस वास्तविकता से
परेशान नहीं है।
जीवन तुझे जीना इतना
आसान नहीं है।।
विवशता है बुढ़ापा कोई
अभिशाप नहीं है।
वृद्धाश्रम इस समस्या का
समाधान नहीं है ।।
गुजरना है हमें भी इस
अवस्था से एक दिन।
ऐसा तो नहीं है कि
कर्मों का भुगतान नहीं है।।
समझो तो इबावत
न समझो तो समस्या ।
माँ-बाप की सेवा से
बड़ा कोई पुन्य नहीं है।।
35,
याद भी तेरी साथ लाती है ।
हाय बरसात दिल दुखाती है ।
आप से कुछ गिला नहीं हमको ।
हमें क़िस्मत भी आज़माती है ।
दौर-ए- महफ़िल नहीं,अब तो ।
साथ तन्हाईयां, निभाती हैं ।।
आप पर जब यकीन करते हैं ।
दिल की उम्मीदें टूट जाती हैं ।
याद भी तेरी साथ लाती है ।
हाय बरसात दिल दुखाती है ।।
36,
दिल का भी इत्मीनान रक्खेंगे।
फ़ासला, दरमियान रक्खेंगे ।
आपकी सोच मुख़्तलिफ से।
हम भी इसका रक्खेंगे।।
वार तुम पर तो कर नहीं सकते।
खाली अपनी म्यान रखेंगे।
दोस्तों की कमी नहीं होगी।
जितनी मीठी जुबान रक्खेंगे ।।
करके ख़ामोशियों में गुम खद को।
दिल का हम इम्तिहान रक्खेंगे ।
37,
अस्तित्व पर अपना अधिकार करिए।
स्वयं भी स्वयं का सत्कार करिए।।
समझे ना जो तेरे भावों की भाषा ।
दूर से ही उसको नमस्कार करिए।।
दया, प्रेम का ह्रदय में विस्तार करिए।
किसी का कभी ना तिरस्कार करिए ।
अभिव्यक्ति पर अपनी उपकार करिए।
जो स्वीकार ना हो, अस्वीकार करिए ।
अस्तित्व पर अपना अधिकार करिए।
स्वयं ही स्वयं का सत्कार करिए ।।
38,
मेरी ख़्वाहिश ने मुझको लूटा है।
देखा आंखों ने ख़्वाब झूठा है ।
यूँ ही तुझसे ख़फ़ा नहीं हैं हम।
दिल नहीं, ए’तबार टूटा है।
कुछ नहीं तुझसे प्यार है शायद ।
तेरा एहसास दिल को छूता है ।।
क्यों बिछड़ कर बिछड़ नहीं पाये।
साथ कब से हमारा छूटा है।
हम मुकद्दर तो कह नहीं सकते।
जो भी अपना है वो ही रूठा है ।।
39,
नैन अपने यूँ ही न खोयें हैं ।
दर्द लफ़्ज़ों में लिख के रोयें हैं ।।
जागी आंखें गवाही दे देंगी ।
नींद अपनी कभी न सोयें हैं ।
पूछ न हाल-ए-दिल शिकस्ता का ।
बोझ गम के भी उसने ढोये हैं ।।
कुछ निशां उसके रह गये बाक़ी ।
आंसूओं से जो दाग़ धोयें हैं ।
नैन अपने यूँ ही न खोयें हैं ।
दर्द लफ़्ज़ों में लिख के रोयें हैं ।। |
40,
फूल जैसे हम खिल नहीं पाये ।
तुमसे मिलना था मिल नहीं पाये ।।
दर्द रीसता है आज भी उनसे ।
जख़्म दिल के जो सिल नहीं पाये ।।
ज़ब्त का भी कमाल इतना था ।
अश्क़ पलकों से गिर नहीं ।।
भूल सकते थे आपको हम भी ।
आपसा हम जो दिल नहीं पाये ।।
41,
दुश्मनी इस तरह निभायेगा।
वो तेरी हां में हां मिलायेगा ।।
टूट जायेगा कांच की मानिंद ।
दिल किसी से अगर लगायेगा ।।
पहचान उसको तू न पायेगा ।
वो तुझे मात दे ही जाएगा ।।
कर गईं जो दूरियां दिल में ।
फ़ासले कैसे तू
42,
परमूल्यांकन की न हो
किसी से कभी अपेक्षा ।
स्वयं को पहचानने की हो
जो दृष्टि आपकी ।।
रिक्त न हो मन जब
तेरा विषयों से ।
कैसी पूजा फिर कैसी
इबादत आपकी ॥
सम्बन्धों में कभी न हो
कलह, कलुषता ।
कर्तव्यों के प्रति हो जो
निष्ठा आपकी ।।
जीवन यात्रा में सन्तुष्टि
संभव हो ।
फिर सबकी प्रसन्नता में हो
जो प्रसन्नता आपकी ।।
परनिंदा कभी किसी की
कर न पाओ।
अपने दोषों पर भी हो
जो दृष्टि आपकी ।।
43,
हम ये कैसा मलाल कर बैठे ।
दिल का तुम से सवाल कर बैठे ।।
प्यार करना हमें न आया मगर ।
इश्क में हम कमाल कर बैठे ।।
खोये थे हम तिरे ख़यालों में ।
पर हकीकत ख़याल कर बैठे ।।
ज़िक तेरा ज़बान पर ला कर ।
अपना चेहरा गुलाल कर बैठे ।।
आप को चाहते हैं उन से कहा ।
हम भी कैसी मजाल कर बैठे ।।
44,
एक है ईश्वर एक है दुनिया ।
भेद क्यों फिर सारे हुए हैं ।।
जीत वो सकते हैं कैसे ।
खुद से जो हारे हुए हैं ।।
आसमां उनसे भरा है।
मर के जो तारे हुए हैं ।।
बे’बसी न पूछ हमसे।
कितना दिल मारे हुए हैं।।
हक़ पर चलने वाले शाद ।
कब किसे प्यारे हुए हैं ।।
45,
ज़िन्दगी बे’जवाब रहने दो ।
मेरी पलकों पे ख़्वाब रहने दो।।
खुद की इस्लाह कर सकूं मै भी।
मुझको कुछ तो खराब रहने दो।।
इतने ज़यादा गुनाह नहीं अच्छे।
कुछ तो बाकी सवाब रहने दो।।
देख लो एक नज़र मुझे यूँ ही।
मुझमें शामिल शबाब रहने दो।।
46,
जीवन में महत्व रखती
मेरे मन की स्थिरता
तुझे स्पर्श न कर पाई
मेरे शब्दों की व्याकुलता
हर श्वास पर भारी है
मेरे मन की विवशता
तुझसे और तुझी तक है
मेरे जीवन की सम्पूर्णता।
47,
शिद्तों में जो बे’शुमार रहा ।
मेरी आंखों का इंतिज़ार रहा ।।
भूल हमको कभी नहीं सकता ।
दिल में बाक़ी ये ए’तबार रहा ।।
पूंछ कर ज़िंदगी बता देना ।
हम पर किसका कहां उधार रहा ।।
मेरा कब हम पे इख़्तियार रहा ।
दिल तो दिल था सो बे’क़रार रहा ।।
बे’बसी ज़िंदगी में थी शामिल ।
मेरा दामन भी तार-तार रहा ।।
48,
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
हो हालात कैसे, तुम सदा मुस्कुराना ।।
मिट्टी की खुशबू भी दिल जीत लेगी ।
कभी बारिशों में, तुम भीग जाना ।।
सर्द होने लगे दिल-ए- एहसास सारे ।
रिश्तों की गर्माहट को, तुम आज़माना ।।
कभी रूठ कर मुझसे न तुम दूर जाना ।
मनाऊं जो मैं तुमको, तुम मान जाना ॥
शिकायत लबों पर कभी तुम न लाना ।
हो हालात कैसे, तुम सदा मुस्कुराना ।।
49,
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए।
भीड़ से हट के चलने की कोशिश करिए ।
खुद में मुकम्मल यहाँ नहीं होता कोई।
भूल कर अपनी किसी से न तुलना करिए।।
बाक़ी रह जाना है, अगर दिलों में सबके ।
अपने अख़लाक़ को बेहतर से बेहतर करिए ।
वक़्त से आंख मिलाने की हिम्मत करिए।
तेरी पहचान है, क्या साबित करिए ।।
खुद में बदलाव की एक तमन्ना करिए।
भीड़ से हट के चलने की कोशिश करिए ।।
50,
जीवन का जीवन पर
तेरे ये उपकार हो ।
केवल सफलता ही नहीं
हार भी स्वीकार हो ।।
वाणी तेरी मीठी-मीठी
उच्य तेरे विचार हो।
मित्र बने शत्रु भी तेरे
ऐसा तेरा व्यवहार हो ।।
तेरी प्रतिष्ठा तेरा गौरव
जीवन का पर्याय हो, ।
जाग उठे आत्मा तेरी
ऐसी एक ललकार हो ।।
कर दूं तुझे आत्मा ही नहीं
हर श्वास समर्पित,
मेरा ‘तुझपर मेरे प्रिय
इतना तो अधिकार हो ।”
डाॅ फौज़िया नसीम शाद