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26 Oct 2021 · 1 min read

गजल_-गुस्से का

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क्यों हो नहीं सकता, यहाँ गुस्से का गजल।
जीते हैं लोग हर दिन यहाँ गुस्से का गजल।
प्यार सिर्फ कथाओं में है जीता हुआ मिला।
व्यवहार में सुनते-सुनाते वे गुस्से का गजल।
कत्ल के लिए उठे थे हाथ स्नेह से दोस्तो।
इसलिए कहेंगे नहीं था गुस्से का ये गजल।
दर्जे से निम्न कहना दर्जे से निम्न रखना।
क्या है नहीं रचा-बसा गुस्से का एक गजल।
गुस्से के इस गजल में ग्लानियां हैं बहुत।
जीते हुए मरते रहने में गुस्से का है गजल।
करवट बदल, न डर, तुमको तेरी बड़ी कसम।
लिखने उठाओ क्रोध में गुस्से का वो गजल।
गाओ,लिखो,कहो,सुनो गुस्से का वह गजल।
झेलते जीते रहे जो अंत्यज्य सा वह गजल।
विद्रोह नहीं है,‘हक को’ अधिकार सा मांगना।
हक के लिए गाना तुझे है गुस्से का ही गजल।
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