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18 Nov 2018 · 1 min read

गजल

वक्त की आमद का ये आगाह तो होता नहीं |
जो भी होता सबके खातिरख्वाह तो होता नहीं |
(खातिरख्वाह–मनचाहा)
++
ठोकरें भी सख्त देता जो जमा तरतीब से,
हर गढ़ा पत्थर निशाने राह तो होता नहीं |
(निशाने राह–मील का पत्थर)
++
पीरे नाबालिग पिरेजीदान कैसे हो गया,
शाह का अहमक सा बेटा शाह तो होता नहीं |
(पीरे नाबालिग –वह बूढ़ा जो हरकत
बच्चों सी करे)

पिरेजीदान–सभापति)
++
बाँटते खाना जो खाने के नहीं काबिल रहा,
घर ये मुफलिस का कोई पागाह तो होता नहीं |
(पागाह–तबेला)
++
बस तेरे ही पास आकर ठहरते मेरे कदम,
ख्वाब में चलता हूँ पर गुमराह तो होता नहीं |
++
गर नहीं छोटे जो होगें कौन बोले तू बड़ा,
हर सितारा आसमां पर माह तो होता नहीं |
(माह–चांद)
++
काम के बदले में लेता दाम, वो भी आदमी,
अब ‘मनुज’ कोई किसी का दाह तो होता नहीं |
( दाह–गुलाम)

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