गजल
आ गये जब पास मेरे वो हिचकिचाये भी नहीं
दर्द दास्तां को सुना तब वो लजाए भी नहीं
प्यार में पागल हुए जो हम न शरमाए कभी
भूल फिर हमसे हुई तब बडबडाए भी नहीं
रो रहा दिल यह कभी ठुकरा दिया तूने हमें
छोड़ तुझको दिल पे कोई और छाए भी नहीं
उस खुदा को आप में हमने हमेशा पा लिया
इसलिये तो सोच के हम आजमाए भी नहीं
छांव बन के मैं चलूँ , रग में बसू तेरी अभी
रात मेरे साथ रह क्यों जगमगाए भी नहीं
ताप दिल का दूर होता , बाँसुरी बन बजते तुम
मन सुरों की सरगमें बन , गुनगुनाए भी नहीं
गीत तेरे प्रेम के गाती रही हूँ आज भी
खत लिखे चाहत भरे मैनें जलाए भी नहीं