गजल
बह्र :~ 2122, 2122 , 212
फिर मिलेंगे आज कुछ हासिल नहीं।
उठ चुके सारे यहां महफिल नहीं।।
दाग कितने मुझको अब तक मिल चुके।
कौन कहता प्यार में शामिल नहीं।।
रोज तेरा नाम सब लेते रहे,
पर मेरे ही वास्ते साहिल नहीं।।
जालसाजों का बढ़ा अब जोर है,
कोई’ भी दिखता मुझे जाहिल नहीं।।
बाग फूलों से लदे तुमको मुबारक।
सच यही है आस इस काबिल नहीं।।
रचनाकार -कौशल कुमार पाण्डेय “आस”