गजल
जागती रात अकेली -सी लगे।
तन्हाई एक सहेली-सी लगे।
मुद्दतो से वीरान है ये दिल
मुहब्बत अब पहेली सी लगे
छोड के गये वो इस तरह
रूह वीरान हवेली सी लगे।
लहू के रंग से रचाई मेंहदी
सजी उन को हथेली सी लगे।
संध्यामहकती है खुद ऐसे
खुशबू जैसे चमेली सी लगे।
✍संध्या चतुर्वेदी
मथुरा यूपी