** गजल **
कहते थे अपना पर, कहो क्यूं अब मैं बेगानी हो गई।
जो कसमें खायी थी तुमने, वो सारी बेमानी हो गई ।
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बड़ी सिद्दत से निभायी है , जिस रिश्ते को हमने
आज तो लगता यही है जैसे मेरी ही कुर्बानी हो गई।
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बेवजह अपने दिल पर किया हमने जुल्मों सितम
चोट खाए जख्म हरे हैं,कैसे कहूं बातें पुरानी हो गई।
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सोचा दर्द दिल की, एक कहानी ही लिख दूँ पर
जिनको लिखना था वो सब बातें जुबानी हो गई ।
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जिंदगी के सफर में कई मोड़ से गुजरी है ” पूनम ”
आह निकलती है दिल से कैसे कहूं मेहरबानी हो गई।
@पूनम झा
कोटा राजस्थान