गजल..
तनहाई में वो अक्सर पास में रहता है,
कुछ यादों का उजाला रात में रहता है।
दो कदम चलता हूँ और थक जाता हूँ,
बाबुजी का दर्द मेरे हाथ पाँव में रहता है।
सात जडी़बूटियों से बनाई थी मुन्ने के लिये,
माँ के बाद वो परचा मेरे पास मे रहता है।
किताबों की सैल मे रखकर छुपाते थे हम,
वो गुड़ का जायका कहाँ मिठास में रहता है।
बेमौसम बादल की तरह रंग बदलता था,
वो बंदा आजकल सादे लिबास में रहता है।
जिसे देखकर सारी रात कट जाती थी,
वो चांद एक अरसे से गिलास मे रहता है।
एक हादिसा गुज़र गया है इस पर जबसे,
मेरा दिल तब से होशो हवास में रहता है।
~@अनुराग©