गजल
“लहरों को पतवार करोगे,
तो खुद को मझधार करोगे।
साथ न देगा कोई भी जो,
बार-बार इनकार करोगे।
मनमर्जी कर आज मिटा दो,
फिर इक दिन मनुहार करोगे।
कहाँ निभेंगे तुमसे रिश्ते,
अपनों से तकरार करोगे।
दर्प तुम्हारा ही दोषी है,
कैसे तुम स्वीकार करोगे।
मोल न होगा ,दीवारों का,
जो घर को बाजार करोगे।”
#रजनी