गजल
बहर १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
काफिया ई
रदीफ मालूम होती है
गजल
नदी बरसो यहॉ कोई बही मालूम होती है
सुनी थी जो कहानी, अब सही मालूम होती है
है जिंदा खुशबुएँ अब तलक दीवारो मे महलो की
मिरी जॉ ,वो यहॉ सदियो रही मालूम होती है
बिठा लाकर कभी उसको भी पहलू मे खुशबुऔ की
ये रंजो गम की दीवारे ढही मालूम होती है
कहा किसने, दिलो को तोड तू ,छिपके चली जा अब
जहॉ देखूँ वही मुझको खडी मालूम होती है
पली नाजो,हँसी रातो,खिली फूलो सी वो बेटी
मुझे तो कोई खुबसूरत परी मालूम होती है
गिरा अश्कों को यों ना वंदना पलको से रातोदिन
हँसी अनमोल मोती की लडी मालूम होती है
वंदना मोदी गोयल