गजल
शमा को छोड़कर अक्सर ये परवाने नहीं जाते
मिटा देते ये खुद को दिल को बहलाने नहीं जाते
बड़े खुद्दार हैं जीते हैं मरते हैं उसूलों पर
बुलाये बिन ये दीवाने नहीं जाते
अगर कुछ करना है कमबख्त तो मैदान में आ जा
जो रहते भीड़ में पीछे वो पहचाने नहीं जाते
प्यार मिल जाता उन्हें भरपूर अपनो का,
तनावों में नहीं रहते वो मयखाने नहीँ जाते!!
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश