गजल
गजल
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बहुत रोकते हैं नहीँ रोके रुकती,
ये घटना पै घटना घटी जा रही है।
यहाँ आश बदली बरसने के पहले,
मिनट दर मिनट में छटी जा रही है ।
जतन से तो ओढ़ी है जीवन चदरिया,
संभाले संभाले फटी जा रही है ।
बनाई है दूरी नहीं मिलना हमको ,
वो निर्लज्ज आकर सटी जा रही है ।
उसे प्यारा पैसा प्रतिष्ठा न दिखती,
पटाये बिना ही पटी जा रही है।
खुदी खुद की देखो हमारी न पूछो,
जरा सी बची है कटी जा रही है ।
नहीं दुख में सुधि ली बनी थी जो उन पर,
वही आस्था अब हटी जा रही है ।
फंसे लाक डाउन गुरू ले न पाये,
मिठाई बंगाली बटी जा रही है।
गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश