गजल
अब दिखे प्रीत बागबान में क्या
यह मिले भाव किस दुकान में क्या
घाव इतने गहन हमें ज़ो मिले
दर्द मेरा हुआ बयान में क्या
ख्याव सारे संवार लूँ तेरे
जो सजा कर रखूँ मचान में क्या
बावला दिल तुझे पुकारे जब
तू छिपा है कहाँ मकान में क्या
इश्क का जब जुआर चढता है
शेष बचता है तूफान में क्या