गजल सगीर
रिश्तों में मुहब्बत के तिजारत नही करते।
हम सिर्फ दिखावे की मुहब्बत नही करते।
तू मांग मेरे हाथ को मां बाप से मिलकर।
हम इश्क में अपनों से बगावत नही करते।
बातिल हैं मुक़ाबिल तो दिलेरी है जरूरी।
मजलूम पर जालिम की हिमायत नही करते।
हक बात कहेंगे,और कहते रहेंगे।
हम गैर और अपनों में रियायत नहीं करते।
अपनों पे भरोसे की सगीर ऐसी अलामत।
गैरों की कही बात समाअत नही करते।