गं गणपत्ये! माँ कमले!
गं गणपत्ये!
विघ्न हर ले,
डिगूँ न कर्म से,
बुद्धि – वर दे,
मांँ कमले!
तम हर ले,
अज्ञान दूर कर
ज्ञान भर दे,
ज्ञान मनुज का
है आभूषण,
बुद्धि; धन का
करता आवाहन,
धन से वैभव
और प्रतिष्ठा,
बढ़ता संस्कार
कर्तव्यनिष्ठा,
मंत्रमुग्ध हम,
उन किसान सम,
जिनके खेतों में
हरियाली,
भाग्य हमारे
जगमग जैसे
दिन दशहरा,
रात दिवाली।
मौलिक व स्वरचित
©® श्री रमण
बेगूसराय (बिहार)