गंवार
पढे लिखे गंवार है
तभी नहीं गुजार है
दिलों रहे न खोट जब
तभी न लूटमार है
जगह रहे अनेक पर
मिले न रोजगार है
जगह रहे अनेक पर
मिले न रोजगार है
नयन ये बांक है तिरे
दिखे कभी कटार है
ये जिन्दगी तिरे लिए
जो इश्क का करार है
मिटें न आज दूरियाँ
पड़ी रही दरार है
लिहाज मात का करे
हुई न वो उतार है
कमी गजल में ढ़ूढ़ते
बहुत न जानकार है
चले न जिन्दगी मिरी
बसी जो यादगार है
डॉ मधु त्रिवेदी