गंतव्य को बस पाना है
****गंतव्य को बस पाना है****
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मत हो तू हताश,बस उड़ान भर
दरिया का पानी भी है उफान पर
बेफिक्र हो कर उड़ता जा नभ में
जालिम दुनिया को छोड़ जग में
हौसलों से सदैव मिलेंगी मंजिले
एकाग्रता से बढ़ मत सुन दलीलें
राहों में कितनी भी आएं बाधाएँ
सुनते रहना सदैव मन की सदाएँ
कभी भी तुम तोड़ना मत आशाएँ
विचरण करना सभी तुम दिशाएँ
पराजय से कभी नहीं तुम डरना
विजय हेतु चाहे पड़ जाए मरना
डर के आगे हमेशा होती जीत है
संघर्षों से मिलती जय की रीत है
खून पसीने का फल मिलता है
लाल लहू का रंग खूब चढ़ता है
अभी तो युद्ध की हुई शुरुआत है
आगे तू देखना होती क्या बात है
लड़ाई दिमाग से जीती जाती है
मन के हारे तो हार हो जाती हैं
श्वेत तुषार सा होता है फतेह रंग
ताप से पिंघल पल मैं हो बदरंग
विचारों को करना होगा मजबूत
दिखेंगे तुम्हे सफलता के सबूत
दुश्मनों के प्रहार को तुम थामना
अहेरी के जाल से नहीं घबराना
बस तुम्हें तो ऊँचे उड़ते जाना है
सुखविंद्र गंतव्य को बस पाना है
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)