गंगोदक छंद
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गंगोदक छंद
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शारदे मात की जो शरण आ गया ,
मात देती उसे बुद्धि उपहार है ।
ज्ञान की रश्मियाँ उर प्रकाशित करें ,
भावना से भरे रिक्त भंडार है ।।
छंद की लहरियाँ गूँजने मन लगे ,
मन बने काव्य का नित्य संसार है ।
दोष सारे तिरोहित हृदय से करे .
माँ कृपा जब करे प्यार ही प्यार है ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’ ,
मथुरा ।
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