गंगा आरती
गंगा माता मोक्ष दायिनी,
भक्ति मुझे दो अनपायिनी।
नहीं साधारण, तेरा जल है गंगाजल,
मज्जन कर जो करें आचमन-
उनको तू दे देती अमित फल।
कलुष तन मन का तू हर लेती,
निर्मल सर्वजनों को कर देती।
रोग शोक को दूर भगाती,
पाप नाशिनी तू कहलाती।
जय तेरी माँ मुक्तिदायिनी।
……….. गंगा माता………………… ।
श्री विष्णु का तू चरणोदक,
जग कल्याण को तू उद्धत।
छोड़ स्वर्ग धरा पर आई,
रोका वेग तेरा श्री शिव ने-
जटा में उनकी तू समाई।
करी विनय जब भागीरथ ने,
पुनि धरती पर माँ गंगे आई।
जय माँ गंगे निर्माल्य दायिनी।
……………गंगा माता……………..।
जीवनाधार तू भारत भू का,
हमको है वरदान प्रभु का।
तेरे बिन कुछ भी नहीं पूरा,
भारत का चित्र चरित्र अधूरा।
सदियों से बहती अविरल धारा-
इस धरती को सिंचित करती है,
होता पैदा प्रचुर धान्य-
तू क्षुधा हमारी हरती है।
जय जय माँ धन धान्य दायिनी।
………….. गंगा माता……………….।
जयन्ती प्रसाद शर्मा