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22 Feb 2024 · 2 min read

“गंगा माँ बड़ी पावनी”

गंगा माँ है पवन धाम,
आओ हम सब करें प्रणाम।
बहती जाएं जो ,वह स्वर हैं गंगा,
भोलेनाथ के जटाओं से ,निकली हैं गंगा।

बहती नदी रुकती नही ,
ममता से भरी ,ये कुछ पूछती नही ।
क्या लाये ,कहाँ से लाये,कुछ बोलती नही,
चाहे जो पाप करे ,चाहे कोई पुण्य करे ।

ये तो है माँ सबकी, ही भीतर बहें,
गंगा नदी ही नही,संस्कृति की प्रतीक हैं ।
गंगा के प्रवाह में ,दिव्य शक्ति निहित है,
हिमालय से लेकर ,बंगाल की खाड़ी तक स्वरूप है ।

यह गंगा मूर्ति नही ,देवी की रूप हैं।
अपने पावन जल को धरा पर पहुचाती हैं,
जिसका अमंगल दोष दूर कर,अमृत सा बरसाती हैं।

भागीरथ के कठोर तप से,वह धरती पर आयीं,
यह गंगा माँ भगवती ,अनादि काल से बहती आयीं।
जो हरि विष्णु के ,चरण कमलों से निकलीं,
तीनों लोकों को ,पवित्र करने निकली।

गंगा माँ से भारत को मिला वरदान,
होता है उद्धार ,कर इनका जलपान।
पंचामृत में एक है,पावन गंगा का नीर,
भवसागर से तर जाता,हर जाता मन का पीर।

वेदों में भी लिखा, माँ गंगा का सार,
जगततारिणी भी कहता,इनको सारा संसार।
कुंती और कर्ण की ,समस्या हल कीं,
गंगा माँ कितनी निश्छल थीं।

केवट का भी करके उद्धार,
खोला था गंगा मां ने मुक्ति का द्वार।
केवल नदी नही, पुण्य पर्व और संस्कार,
हर धर्म और जाति का,मां करती हैं श्रृंगार।

जो हर हर गंगे मंत्र का,करता है उदघोष,
उनका जीवन हरदम, रहता है सुख संतोष।
पूज्यदायिनी माता ,हम सब का दुख हरती है,
जो जीवन के अंतिम, क्षण तक साथ रहती हैं।

लेखिका:- एकता श्रीवास्तव ✍️
प्रयागराज

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