गंगा की व्यथा
मुझे धरती पर लाना भगीरथ का अरमान था
अपने पूर्वजों के प्रति उसके दिल में सम्मान था
ब्रह्मा जी आज्ञा से उतर आई धरा पर
करना जन जन का कल्याण था।
सदियों से करती आई लोगों का उद्धार
शस्य श्यामल मेरे जल से हुआ है ये संसार
पर आज बहुत कष्ट में हूँ घुट रहा है दम
कोई तो होता धरा पर जो सुने मेरी पुकार।
मेरी निर्मल काया आज इतनी मलिन हो गई
अब में गंगा नहीं गन्दा बनकर रह गई
लगता है अब मेरा जाना ही बेहतर है
मेरे बेटों को मेरी जरूरत न रह गई।