गंगा काशी सब हैं घरही में.
चला मुसाफिर देश घूमने, करने दुनियादारी की सैर.(१)
अभी अभी तो निकला घर से, फिर क्यों हो रहा बेचैन..
घर छूटा,छूटे चौपाल , और छूटे खेत-खलिहान.
नये नये लोगों से मिलना, हो गया हैं रोज का काम..
घर से निकरे दिल्ली पहुंचे, फिर चंडीगढ़ पहुंचे जाय.
नजर जात हैं ज्योंहि तक हमरी, सब भूखे लंगे रहे दिखाय..
चला मुसाफिर देश घूमने, करने दुनियादारी की सैर.(२)
अभी अभी तो निकला घर से, फिर क्यों हो रहा बेचैन..
जन बच्चन की याद सता रही, मोसे बाहर रहो न जाये.
पुत्तन भैय्या तुम्हें मुबारक, अब तुम दुनिया घूमो जाये..
हमरी दुनिया हमरे घर मा, मात पिता कुटुंब परिवार.
जब तक खुशी नहीं जियरा में, तब तक सब दुनिया बेकार..
घरही तीरथ घरही हैं जन्नत, घर ही हैं जीवन का सार.
चारों धाम गया और काशी, सब कुछ हैं घर में संसार ..
चला मुसाफिर देश घूमने, करने दुनियादारी की सैर.(३)
अभी अभी तो निकला घर से, फिर क्यों हो रहा बेचैन..