ख्वाहिशें तमाम न थी ।
ग़ज़ल ।। ख्वाहिशें तमाम न थी ।।
जिंदगी थी रेत सी बन्दिसे तमाम न थी ।
प्यार के आग़ोश में ख्वाहिशे तमाम न थी ।।
कट गये वो दर्द के लम्हे ज़रा सा घाव दे ।
चुप रहा हर जख़्म पर नुमाइशे तमाम न थी ।।
रह गया ख़ामोश मैं वो दग़ा करते रहे ।
प्यार में कायल मेरी फ़रमाइशें तमाम न थी ।।
था बड़ा नादान दिल उनको समझ बैठा ख़ुदा ।
था यकीं मेरे प्यार में आजमाइसे तमाम न थी ।।
रकमिश तुम्हारी याद के आंसू बड़े अनमोल है ।
पर क्या करे दिल गमसुदा रहाईशे तमाम न थी ।।
राम केश मिश्र