“ख्वाब”
“ख्वाब”
कोई ख्वाब मुकम्मल हो ना सके
कहीं जमीं तो कहीं आसमां होते,
मोहब्बत का हश्र मत पूछो ‘किशन’
कुछ मिटते तो कुछ जवां होते।
“ख्वाब”
कोई ख्वाब मुकम्मल हो ना सके
कहीं जमीं तो कहीं आसमां होते,
मोहब्बत का हश्र मत पूछो ‘किशन’
कुछ मिटते तो कुछ जवां होते।