ख्वाब शशि के
बेशर्म की कलम से
ख्वाब शशि के
कहने को अपवाद रहा हूँ।
पर आंसू सा रोज बहा हूँ।।
अंधियारी जीवन रजनी में।
ख्वाब शशि के देख रहा हूँ।।
कितनी बार मिटाया खुद को।
पूछ ना कितनी बार ढहा हूँ।।
रहा अनसुना यूँ जीवन भर।
गया मैं कितनी बार कहा हूँ।।
दुनिया समझे मुझे “बेशरम”।
हर नहले पर पड़ा दहा हूँ।।
विजय बेशर्म
गाडरवारा 9424750038