ख्वाब तुम्हारे मेरी आंखों में
ख्वाब तुम्हारे मेरी आंखों में
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तुम्हारे ख्वाब मेरी आंखों में फलफूल रहे हैं,
न चाहते हुए भी कुलांचे भर रहे हैं।
तुम्हारे लिए मेरा तो कोई ख्वाब नहीं
मुझे तुम्हारी याद भी रत्ती भर नहीं आती
और न तुम्हें पाने या खोने की चिंता है मुझे
खुली आंखों से सपने देखने की
आदत भी तो नहीं है मुझे।
मैं तो तुम्हारे ख्वाब अपनी आंखों में सजाता हूँ।
तुम्हारे हर ख्वाब धरातल पर उतर आयें
बस! यही तो मैं चाहता हूँ
तुम्हारी खुशियाँ मेरा सपना है
तुम्हारे हर ख्वाब साकार होते देखना चाहता हूँ
बस! इसीलिए तुम्हारे ख्वाब
अपनी आंखों में मैं सजाता हूँ।
सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
© मौलिक स्वरचित