ख्वाबों में कान्हा के आने लगी हूं
ख्वाबों में कान्हा के आने लगी हूं,
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ख्वाबों में कान्हा के आने लगी हूं,
जीवन को भक्ति में डुबाने लगी हूं।
कभी उड़ती थी खोजने आसमां में,
अब धरा में मोहन को खोजने लगी हूं।
लफ़्ज़ों की मुझको जरूरत नहीं है,
बंशी को अब मैं बहुत पढ़ने लगी हूं।
थक जाती हूं जब मैं जहां के शोर से,
अकेले कान्हा से बातें में करने लगी हूं।
नफ़रत को दिल से मिटाना ही होगा, मोहन से अब मोहब्बत करने लगी हूं।
आरज़ू नहीं कोई साथ मेरे आए,
मोहन की दीवानी में होने लगी हूं।
जीवन के पथ में कोई न था अपना,
तुमको कान्हा हमसफ़र में समझने
लगी हूं।
अकेले ये जीवन “सुषमा,,काटेगी कैसे,
तुमको ही कान्हा साथी समझने लगी हूं।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर