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31 May 2022 · 1 min read

ख्वाइशें

​काश! ख्वाइशें ही ना होती ं,

तो किसी हद तक,

जिंदगी आसान हो जाती,

ये तो, उलट, और,

बढते ही जाती ं है,

मन को विचलित कर जातीं है.

जैसे जैसे पहली पूरी होती है,

न जाने कहाँ से,

दूसरी आ जाती है.

फिर हम बेचैन हो जाते हैं,

बिता अच्छा सब भूल जाते हैं,

नयी, उधेड़बुन में लग जाते हैं.

ये ख्वाइशें हमें व्यस्त रखती हैं,

कुछ नये की चाह में,

हमें फिर उलझा देती हैं.

Language: Hindi
140 Views
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